चंडीगढ़ । राजवीर दीक्षित
(BBMB’s reply in High Court against Punjab Govt: Know why floods occurred in the state)भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट को बताया कि अगर समय पर पानी छोड़ा गया होता तो पंजाब में बाढ़ की स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती।
मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ के सामने पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश गर्ग ने दलील दी कि बीबीएमबी का अधिकार क्षेत्र मौसमी परिस्थितियों—मानसून, गर्मी आदि—के अनुसार महीनेवार पानी का नियमन करना है। इससे राज्यों के हिस्से की कुल मात्रा में कोई बदलाव नहीं होता।
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गर्ग ने कहा कि मामला केवल 8,500 क्यूसेक पानी को एक महीने पहले रिलीज़ करने से जुड़ा था। अगर उस समय पानी छोड़ दिया जाता तो पंजाब में बाढ़ इतनी भयावह नहीं होती, लेकिन पंजाब की ओर से पानी छोड़ने से इनकार कर दिया गया, जिसके चलते बीबीएमबी को मानसून के दौरान अतिरिक्त पानी छोड़ना पड़ा।
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वहीं, पंजाब के एडवोकेट जनरल मनींदरजीत सिंह बेदी ने तर्क दिया कि रावी-ब्यास नदी जल बंटवारे का अधिकार पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत तय है, न कि बोर्ड के प्रस्तावों से। उनके अनुसार बीबीएमबी किसी भी राज्य को उसके हिस्से से ज़्यादा पानी जारी करने का अधिकार नहीं रखता।
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हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट नियम-1974 पेश करने के निर्देश दिए ताकि बोर्ड की वास्तविक शक्तियों की सीमा स्पष्ट हो सके। यह सुनवाई पंजाब सरकार की उस याचिका पर हो रही थी जिसमें 23 अप्रैल की बीबीएमबी बैठक के निर्णय को चुनौती दी गई है। उस बैठक में हरियाणा को पीने के पानी के संकट और नहर मरम्मत कार्य का हवाला देते हुए 8,500 क्यूसेक पानी देने का निर्णय दर्ज किया गया था।
👉 यह मामला न केवल बाढ़ प्रबंधन और जल वितरण पर सवाल उठाता है, बल्कि राज्यों के बीच जल अधिकारों की खींचतान को भी गहराता है।