नई दिल्ली। राजवीर दीक्षित
(Justice Suryakant to Take Oath as India’s 53rd Chief Justice Today)छोटे शहर से निकलकर देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी तक पहुँचना किसी प्रेरक कहानी से कम नहीं—और जस्टिस सूर्या कांन्त की यात्रा इसका जीता-जागता उदाहरण है। आज वह भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेने जा रहे हैं, जो न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ने वाला क्षण माना जा रहा है।
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जस्टिस सूर्या कांन्त अपने सशक्त और ऐतिहासिक फैसलों के लिए पहचाने जाते हैं। धारा 370 को रद्द करने, पेगासस जासूसी मामले, बिहार में वोटर सूची संशोधन और राजद्रोह कानून को निलंबित करने जैसे राष्ट्रीय महत्व के मामलों में उनकी निर्णायक भूमिका रही। संवैधानिक मूल्यों, नागरिक अधिकारों और न्यायिक सुधारों पर उनकी दृढ़ दृष्टि उन्हें आधुनिक भारत के अत्यंत प्रभावशाली न्यायविदों में शुमार करती है।
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10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार में जन्मे जस्टिस सूर्या कांन्त का सफर एक सामान्य परिवार और छोटे शहर के वकील से देश की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद तक पहुंचने का है। पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट और बाद में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उन्होंने कई अहम फैसले लिखे। सुप्रीम कोर्ट में उनका कार्यकाल भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नागरिकता और लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़े प्रकरणों में उनकी निर्णायक समझ के लिए जाना गया।
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महिला सरपंच की बहाली से लेकर बार एसोसिएशनों में महिलाओं के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने जैसे निर्णय, उनके न्यायिक दृष्टिकोण में सामाजिक न्याय की अहमियत को दर्शाते हैं।
आज जब वे मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ले रहे हैं, देश उनकी न्यायिक समझ, संवैधानिक प्रतिबद्धता और न्याय के प्रति समर्पण से बड़ी उम्मीदें लगा रहा है।

















