जब पक्षियों ने बदला ठिकाना: गोबिंद सागर बना प्रवासी पक्षियों का नया बसेरा

चंडीगढ़। राजवीर दीक्षित
(Migratory Birds Shift to Gobind Sagar Lake)हिमाचल और पंजाब की सीमा से सटी गोबिंद सागर झील इन दिनों प्रवासी पक्षियों के लिए नया सुरक्षित ठिकाना बनकर उभर रही है। सर्दियों की शुरुआत के साथ ही बार-हेडेड गूज सहित कई प्रवासी प्रजातियों ने रोपड़ और नंगल की पारंपरिक आर्द्रभूमियों के बजाय गोबिंद सागर झील के उथले बैकवॉटर क्षेत्रों का रुख किया है। यह बदलाव न केवल पक्षी प्रेमियों के लिए चौंकाने वाला है, बल्कि पर्यावरण संतुलन को लेकर भी अहम संकेत देता है।

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पक्षी विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का मानना है कि बीते कुछ वर्षों में रोपड़ और नंगल वेटलैंड क्षेत्रों में बढ़ती मानवीय गतिविधियां, निर्माण कार्य और प्रदूषण ने प्रवासी पक्षियों को नए विश्राम स्थलों की तलाश के लिए मजबूर किया है। नंगल के पक्षी प्रेमी डॉ. सतबीर के अनुसार, इस वर्ष नैना देवी के पास गोबिंद सागर झील में बार-हेडेड गूज के बड़े झुंड देखे गए हैं, जबकि पारंपरिक वेटलैंड क्षेत्रों में इनकी संख्या बेहद कम रही है।

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विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन इस बदलाव की एक बड़ी वजह है। हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी की कमी और असामान्य गर्मी के कारण प्रवासी पक्षियों के आगमन में देरी हो रही है। आमतौर पर दिसंबर के पहले पखवाड़े में पहुंचने वाली कई प्रजातियां अभी तक नहीं आई हैं। फिलहाल रोपड़ और नंगल क्षेत्रों में केवल नॉर्दर्न पिंटेल बतख की मौजूदगी दर्ज की गई है।

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प्रवासी पक्षी सर्दियों में यूरेशिया, साइबेरिया और मंगोलिया जैसे ठंडे इलाकों से भारत की आर्द्रभूमियों में आते हैं। शांत वातावरण, पर्याप्त भोजन और सुरक्षित विश्राम स्थल इनके लिए बेहद जरूरी होते हैं। लेकिन झीलों के आसपास बढ़ती भीड़, लाउडस्पीकरों का शोर और मानवीय दखल इनके लिए खतरा बनता जा रहा है।

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वन्यजीव विभाग जनवरी में बर्ड सेंसस कराने की तैयारी कर रहा है, जिससे प्रवासी पक्षियों की वास्तविक संख्या और उनके बदलते प्रवासन पैटर्न की स्पष्ट तस्वीर सामने आ सके। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आने वाले हफ्तों में प्रवासी पक्षियों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन यह भी तय है कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय दबाव भविष्य में वेटलैंड पारिस्थितिकी के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरेंगे।

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