ब्रेस्ट और लंग कैंसर की ये 3 जरूरी दवाएं होंगी सस्ती, सरकार ने लिया बड़ा फैसला

दिल्ली । राजवीर दीक्षित

(Major Price Cuts on Cancer Drugs Bring Hope to Patients) लोगों को जरूरी दवाएं सस्ती कीमतों पर मिलती रहें। इसके लिए सरकार दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करती है। अब सरकार ने दिवाली से ठीक पहले कैंसर के मरीजों को बड़ी राहत दी है। इसके चलते कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली तीन प्रमुख दवाओं की एमआरपी घटने जा रही है।

सरकार ने इस संबंध में आदेश भी दे दिए हैं।

देश में जरूरी दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) की है। अब एनपीपीए ने कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली तीन दवाओं ट्रैस्टुजुमैब, ओसिमर्टिनिब और डर्वालुमैब की एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) कम करने का निर्देश दिया है।

इनमें ट्रैस्टुजुमैब का इस्तेमाल ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में होता है, जबकि ओसिमर्टिनिब का इस्तेमाल लंग कैंसर के इलाज में और डर्वालुमैब का इस्तेमाल दोनों तरह के कैंसर के इलाज में होता है।

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सस्ती कीमतों पर दवाइयाँ उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता

कैंसर की इन दवाओं की कीमतों में कमी करते हुए सरकार ने कहा है कि यह उसकी प्रतिबद्धता है कि आम लोगों को कम कीमत पर ज़रूरी दवाइयाँ मिलती रहें। इसलिए एनपीपीए ने दवाओं की अधिकतम कीमत कम करने का निर्देश दिया है। हाल ही में इन दवाओं पर जीएसटी दर में कमी की गई है, जबकि केंद्रीय बजट 2024-25 में इन दवाओं पर सीमा शुल्क समाप्त करने की भी घोषणा की गई थी।

इसलिए सरकार का कहना है कि कर में कमी का असर दवाओं की कीमतों पर भी दिखना चाहिए। इसलिए अब सरकार ने इनकी एमआरपी कम करने का आदेश दिया है। वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने इस साल 23 जुलाई को एक अधिसूचना जारी कर तीन दवाओं पर सीमा शुल्क घटाकर शून्य कर दिया था।

10 अक्टूबर से लागू होंगी नई कीमतें

सरकार ने हाल ही में इन दवाओं पर जीएसटी दर 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दी है। इसलिए कंपनियों को 10 अक्टूबर 2024 से ही इसकी एमआरपी कम करनी पड़ी, क्योंकि उसी दिन से इसकी नई एमआरपी प्रभावी होगी। निर्माताओं को एमआरपी कम करने और डीलरों, राज्य औषधि नियंत्रकों और सरकार को मूल्य परिवर्तन के बारे में सूचित करने का भी निर्देश दिया गया है।

लैंसेट के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में कैंसर रोगियों की संख्या बढक़र 14 लाख से अधिक हो गई है। हर साल इसमें वृद्धि का रुझान है। 2020 में 13.9 लाख थे, जो 2021 में बढक़र 14.2 लाख हो गए, जबकि 2022 में इनकी संख्या 14.6 लाख तक पहुंच गई।