मकान-खरीदारों से ‘धोखाधड़ी’: मोहाली में बिल्डर-बैंक ‘सांठगांठ’ पर और मामले दर्ज करने के लिए सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट की अनुमति

चंडीगढ़ । राजवीर दीक्षित

(Fraud on homebuyers: SC allows CBI to file more cases in Mohali builder-bank nexus)सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, मोहाली और प्रयागराज में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में बैंकों और बिल्डरों की “अशुभ सांठगांठ” से मकान-खरीदारों को ठगने के मामलों में छह और नियमित केस दर्ज करने की अनुमति दी।

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न्यायमूर्ति सूर्यकांत, उज्जल भुइयां और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सीबीआई को कानून के अनुसार आगे बढ़ने की अनुमति दी। यह आदेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की दलीलों के बाद दिया गया, जिन्होंने एजेंसी की ओर से कहा कि दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, मोहाली और प्रयागराज के बाहर सुपरटेक लिमिटेड को छोड़कर अन्य बिल्डरों की परियोजनाओं में प्रारंभिक जांच पूरी कर ली गई है।

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पीठ ने सीबीआई के इस बयान पर गौर किया कि प्रारंभिक जांच के बाद एक संज्ञेय अपराध सामने आया है। इसके बाद एजेंसी को नियमित मामले दर्ज करने और कानून के अनुसार कार्रवाई करने की अनुमति दी गई। भाटी ने कहा कि एजेंसी शीघ्र जांच के लिए छह नियमित मामले दर्ज करने और तलाशी एवं ज़ब्ती की कार्रवाई करने को तैयार है।

शीर्ष अदालत ने भाटी को निर्देश दिया कि वे सीलबंद लिफाफे में दी गई रिपोर्ट के कुछ अंश अमीकस क्यूरी अधिवक्ता राजीव जैन को साझा करें।

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22 जुलाई को शीर्ष अदालत ने सीबीआई को दिल्ली-एनसीआर में बैंकों और बिल्डरों की “अशुभ सांठगांठ” की जांच के लिए 22 मामले दर्ज करने की अनुमति दी थी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के बाहर की परियोजनाओं की प्रारंभिक जांच पूरी करने के लिए छह हफ्तों का समय दिया था। ये 22 मामले एनसीआर में काम कर रहे बिल्डरों और उत्तर प्रदेश व हरियाणा की विकास प्राधिकरणों से संबंधित थे।

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सबवेंशन स्कीम के तहत, बैंक स्वीकृत राशि सीधे बिल्डरों के खाते में डालते हैं और बिल्डरों को तब तक ईएमआई चुकानी होती है जब तक फ्लैट गृह-खरीदारों को सौंपे नहीं जाते। लेकिन जब बिल्डरों ने बैंकों को ईएमआई चुकाना बंद कर दिया, तो तिपक्षीय समझौते के तहत बैंकों ने गृह-खरीदारों से ईएमआई की मांग शुरू कर दी।

अदालत ने यह भी दर्ज किया कि सीबीआई की सातवीं प्रारंभिक जांच, जो एनसीआर के बाहर मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, मोहाली और प्रयागराज में सुपरटेक लिमिटेड को छोड़कर अन्य बिल्डरों की परियोजनाओं से संबंधित है, अभी जारी है।

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शीर्ष अदालत 1,200 से अधिक गृह-खरीदारों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिन्होंने एनसीआर—विशेषकर नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गुरुग्राम—की विभिन्न हाउसिंग परियोजनाओं में सबवेंशन योजनाओं के तहत फ्लैट बुक किए थे। उनका आरोप है कि फ्लैट न मिलने के बावजूद बैंकों द्वारा जबरन ईएमआई वसूली की जा रही है।

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29 मार्च को शीर्ष अदालत ने सीबीआई को नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम, यमुना एक्सप्रेसवे और गाज़ियाबाद में बिल्डरों और परियोजनाओं की पांच प्रारंभिक जांच दर्ज करने की अनुमति दी थी। इसके अलावा एक प्रारंभिक जांच सुपरटेक लिमिटेड के खिलाफ दर्ज करने की भी अनुमति दी गई थी, जिसके खिलाफ 799 गृह-खरीदारों ने आठ अलग-अलग शहरों की परियोजनाओं से संबंधित 84 अपीलों के जरिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

22 जुलाई को शीर्ष अदालत ने सीबीआई की सीलबंद रिपोर्ट का अवलोकन किया था। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि बिल्डरों और वित्तीय संस्थानों की भूमिका में संज्ञेय अपराध की पुष्टि होने के बाद 22 नियमित मामले दर्ज कर आगे की जांच की जाए।

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29 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने एनसीआर के बिल्डरों, जिनमें सुपरटेक लिमिटेड भी शामिल है, के खिलाफ सात प्रारंभिक जांच दर्ज करने का निर्देश दिया था।

विकास प्राधिकरणों, बैंकों और बिल्डरों की मिलीभगत पर नाराजगी जताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे नोएडा, गुरुग्राम, यमुना एक्सप्रेसवे, ग्रेटर नोएडा, मोहाली, मुंबई, कोलकाता और प्रयागराज में प्रसिद्ध बैंकों और बिल्डरों के बीच प्रथम दृष्टया सांठगांठ का पता चला है।

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अमीकस क्यूरी ने सुपरटेक लिमिटेड को गृह-खरीदारों से धोखाधड़ी करने वाला “मुख्य अपराधी” बताया, वहीं कॉरपोरेशन बैंक ने सबवेंशन योजनाओं के तहत बिल्डरों को 2,700 करोड़ रुपये से अधिक की राशि अग्रिम दी थी। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि अकेले सुपरटेक लिमिटेड ने 1998 से अब तक 5,157.86 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है।

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