शिमला । राजवीर दीक्षित
(9 Pharma Units Shut in Himachal: ‘Inspector Raj’ and US Standards Blamed)हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की मध्यम, छोटे और सूक्ष्म दवा उद्योगों पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। अब तक 9 फार्मा यूनिट्स ने ताले जड़ दिए हैं, जबकि कई और बंद होने की कगार पर हैं। उद्योग जगत का कहना है कि यदि सरकार ने तात्कालिक कदम नहीं उठाए तो इसका असर प्रदेश की दवा उत्पादन क्षमता पर भारी पड़ेगा और देशभर में आवश्यक दवाओं की कमी पैदा हो सकती है।
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फार्मा उद्योगों के मालिकों ने सीधे तौर पर ‘इंस्पेक्टर राज’ और अमेरिकी मानकों के अनुरूप संशोधित शेड्यूल-एम नियमों को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि ये नियम छोटे और सूक्ष्म उद्योगों के लिए बेहद कठिन और कम समय में पूरे करना असंभव हैं।
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नूरपुर में 7 में से 4 यूनिट्स पहले ही बंद हो चुकी हैं, जबकि संसारपुर टेरेस में कभी 15 फैक्ट्रियों वाला हब अब 5 यूनिट्स के बंद होने से सुनसान पड़ा है। नतीजतन, 700 से अधिक कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। बंद होने वाली यूनिट्स में मेडॉक्स यूनिट-1, मेडॉक्स इंजेक्टेबल, एबारिस हेल्थ केयर, राचिल रेमेडीज और डिक्सन फार्मा शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक, 6 और यूनिट्स जल्द ही बंद हो सकती हैं।
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उद्योग संघों का आरोप है कि बिचौलियों द्वारा की गई गुमनाम शिकायतों के आधार पर नियामक विभाग छापेमारी करता है और बाद में वही बिचौलिए करोड़ों रुपये लेकर यूनिट्स को अपग्रेड कराने और WHO सर्टिफिकेशन दिलाने के ठेके देते हैं। फार्मा मालिकों का यह भी कहना है कि उन्हें हर साल 3 से 10 लाख रुपये तक “प्रोटेक्शन मनी” के तौर पर चुकानी पड़ती है ताकि विभागीय परेशानियों से बचा जा सके।
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इन यूनिट्स ने सरकार से मांग की है कि
* फैक्ट्रियों को अपग्रेड करने के लिए 3 साल की मोहलत दी जाए
* 10 साल का अनुपालन रोडमैप बनाया जाए
* प्रत्येक यूनिट को 10 करोड़ की सब्सिडाइज्ड लोन सुविधा दी जाए
* ब्रोकर-नियामक गठजोड़ की जांच करवाई जाए
उद्योग प्रतिनिधियों के अनुसार, बायो-अवेलेबिलिटी और बायो-इक्विवेलेंस (BA/BE) स्टडीज की अनिवार्यता, जिसका खर्च लगभग 30 लाख रुपये प्रति उत्पाद है, छोटे उद्योगों को बुरी तरह प्रभावित कर रही है।
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हिमाचल प्रदेश ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि यदि राहत नहीं मिली तो प्रदेश की करीब 400 यूनिट्स बंद होने के कगार पर हैं। सिर्फ कांगड़ा में ही करीब 2000 कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में हैं।
एसोसिएशन का कहना है कि छोटे और मध्यम फार्मा उद्योग देश की कुल दवा उत्पादन का 40% हिस्सा देते हैं। इनकी बंदी से न केवल दवा की कीमतें आसमान छूएंगी, बल्कि पूरे देश में आवश्यक दवाओं की भारी किल्लत हो जाएगी।
“यह ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ नहीं बल्कि ‘फियर ऑफ डूइंग बिज़नेस’ है,” उद्योग प्रतिनिधियों ने दो टूक कहा।