रूपनगर | राजवीर दीक्षित
(Illegal Constructions in Sri Anandpur Sahib Eco-Zone Threaten Wildlife Sanctuary)आनंदपुर साहिब स्थित झज्जर-बचौली वन्यजीव अभयारण्य के ईको-संवेदी क्षेत्र (ईको-सेंसिटिव ज़ोन) में तेज़ी से अवैध इमारतें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान खड़े होने लगे हैं। यह क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना जाता है, जहाँ किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि पूरी तरह प्रतिबंधित है।
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सूत्रों के मुताबिक, सरकार द्वारा यहां ईको-टूरिज़्म प्रोजेक्ट की घोषणा के बाद से इस क्षेत्र में व्यावसायिक गतिविधि बढ़ी है। केंद्र के वन मंत्रालय के नियमों के अनुसार, किसी भी वन्यजीव अभयारण्य के चारों ओर 100 मीटर का ईको-सेंसिटिव ज़ोन एक संरक्षित बफर क्षेत्र होता है, जहाँ न तो नया निर्माण और न ही व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति दी जाती है।
रूपनगर के डीएफ़ओ (वन्यजीव) कुलराज सिंह ने बताया कि, “कुछ अवैध निर्माण और व्यावसायिक गतिविधियों की शिकायतें सामने आई हैं। इसमें शामिल लोगों को नोटिस जारी कर दिया गया है। इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के व्यावसायिक या नए निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी।”
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इस बीच,रूपनगर वन्यजीव विभाग ने अभयारण्य के किनारे ईको-टूरिज़्म प्रोजेक्ट विकसित करने का प्रस्ताव रखा है। झज्जर-बचौली वन्यजीव अभयारण्य तेंदुए, सांभर, जंगली सूअर समेत कई प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध है।
प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अनुसार, 4.9 वर्ग किलोमीटर के सुरक्षित क्षेत्र में तीन किलोमीटर लंबा नेचर वॉक, एक इंटरप्रिटेशन सेंटर, जलस्रोतों के पास वॉच टावर, ऊँचे डेक और बोर्ड वॉक बनाए जाएंगे। इंटरप्रिटेशन सेंटर में तेंदुआ गैलरी होगी, जिसमें कैमरा ट्रैप से ली गई फुटेज और शिवालिक झाड़ियों में तेंदुए के छुपने के तरीके को दिखाने वाली इंटरएक्टिव वॉल लगाई जाएगी।
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नेचर वॉक के दौरान पर्यटकों को जंगली बिल्ली, सांभर, जंगली सूअर, साही,देसी खरगोश, नेवला और स्थानीय पक्षियों के बारे में जानकारी मिलेगी। यहां पर बबूल, कीकर और बरगद जैसे देशी पेड़ लगाए जाएंगे। साथ ही, एक ‘पॉलीनेटर कॉर्नर’ भी बनाया जाएगा, जहाँ मधुमक्खियों, तितलियों और पक्षियों की पारिस्थितिक भूमिका समझाई जाएगी। ग्रामीण भी जंगली जानवरों से जुड़े अनुभव साझा करेंगे।
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हालाँकि, विभाग ने साफ़ किया है कि इस ज़ोन में किसी प्रकार की रिहायशी सुविधा नहीं बनाई जाएगी क्योंकि यह क़ानून के खिलाफ़ है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सख़्त कार्रवाई नहीं की गई, तो अवैध निर्माण से अभयारण्य की पारिस्थितिक संतुलन पर गंभीर ख़तरा मंडरा सकता है।