नई दिल्ली। राजवीर दीक्षित
(A Father’s Helpless Plea)“अगर मैं चाहूं तो भी अपनी बेटी का केस नहीं लड़ पाऊंगा…” — यह दिल को झकझोर देने वाले शब्द हैं हरीश मल्होत्रा के, जिनकी बेटी ज्योति मल्होत्रा पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। यह मामला सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक टूटते हुए परिवार की मार्मिक कहानी भी बन चुका है, जहां एक पिता न्याय की उम्मीद में खड़ा है, लेकिन आर्थिक बेबसी से जूझ रहा है।
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हरीश मल्होत्रा ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि उनकी सबसे बड़ी पीड़ा यही है कि वे अपनी बेटी के पक्ष में अदालत में मुकदमा तक नहीं लड़ सकते। “मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि किसी अच्छे वकील को रख सकूं,” वे कहते हैं, और यह कहते हुए उनकी आंखें भर आती हैं। एक पिता की यह असहायता न सिर्फ इंसाफ की राह में बाधा बन रही है, बल्कि उसकी आत्मा को भी झकझोर रही है।
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ज्योति की गिरफ्तारी के बाद से अब तक हरीश न तो अपनी बेटी से मिल पाए हैं, न ही कोई बातचीत हो सकी है। उनका कहना है कि पुलिस ने उनके घर से जो भी सामान जब्त किया, वह अब तक वापस नहीं किया गया है। इसमें ज्योति की निजी डायरी भी शामिल है, जो हमेशा उसके पास रहती थी और शायद इस पूरे मामले की कुछ कड़ियां उसमें दर्ज हों।
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हरीश ने यह भी बताया कि उनकी बेटी पिछले ढाई साल से यूट्यूब पर सक्रिय थी और सामाजिक मुद्दों, व्यक्तिगत अनुभवों तथा विचारों पर वीडियो बनाकर अपलोड करती थी। एक रचनात्मक युवा लड़की, जो अपने विचारों को साझा करती थी, आज सलाखों के पीछे है और उसका परिवार सदमे में।
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यह मामला जहां कानून की गंभीर प्रक्रिया से जुड़ा है, वहीं यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को न्याय पाने का समान अधिकार है? क्या एक पिता की असहायता उस व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाती, जो इंसाफ का वादा करती है?
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ज्योति का दोषी होना या न होना अदालत तय करेगी, लेकिन उसके पिता का टूटना एक सच्चाई है, जिसे समाज और व्यवस्था दोनों को गंभीरता से समझना चाहिए।