चंडीगढ़ । राजवीर दीक्षित
(Postmortem Goes Hi-Tech: No More Body Cuts)अब पोस्टमार्टम के लिए शवों को गले से पेट तक चीरने की जरूरत नहीं होगी। उत्तराखंड स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ऋषिकेश के विशेषज्ञों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिससे बिना चीर-फाड़ के शव का सटीक पोस्टमार्टम संभव होगा
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इस नई तकनीक को “मिनिमली इनवेसिव ऑटोप्सी” नाम दिया गया है। इसमें लेप्रोस्कोपी, एंडोस्कोपी और सीटी स्कैन का संयुक्त उपयोग कर मृत शरीर की आंतरिक जांच की जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह विधि न सिर्फ तकनीकी रूप से सटीक है, बल्कि मृतकों के परिजनों की भावनाओं को भी ठेस नहीं पहुंचाती।
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डॉ. आशीष भूते, फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग, एम्स ऋषिकेश, ने बताया कि इस तकनीक में शव पर मात्र 2-2 सेंटीमीटर के कुछ छिद्र किए जाते हैं। इन छिद्रों से लेप्रोस्कोपिक या एंडोस्कोपिक दूरबीन डालकर शरीर के आंतरिक अंगों की बारीकी से जांच की जाती है। इससे पहले पारंपरिक पोस्टमार्टम में बड़े पैमाने पर चीर-फाड़ करनी पड़ती थी, जिससे मृतकों के चेहरे और शरीर की पहचान भी प्रभावित होती थी।
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क्यों है यह तकनीक महत्वपूर्ण?
मृतकों के सम्मान और परिजनों की भावनाओं की रक्षा
यौन अपराध मामलों में संवेदनशील जांच बिना कट-फाड़ के
जांच प्रक्रिया अधिक सटीक और कम समय में पूरी
आधुनिक चिकित्सा तकनीक का बेहतरीन उदाहरण
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एम्स ऋषिकेश की यह पहल न केवल फॉरेंसिक विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो सकती है, बल्कि देशभर में पोस्टमार्टम प्रक्रियाओं में एक नई क्रांति का सूत्रपात भी कर सकती है।