चंडीगढ़। राजवीर दीक्षित
(Punjab Faces Crisis as Brick Kilns Announce 7-Month Shutdown)पंजाब भर में ईंट भट्ठा मालिकों द्वारा सात महीनों तक भट्ठे बंद रखने के ऐलान ने इस उद्योग से जुड़ी तमाम समस्याओं, संकटों और परेशानियों को उजागर कर दिया है। यह ऐलान मुख्य रूप से मालवा क्षेत्र के भट्ठा मालिकों द्वारा किया गया है, जबकि गुरदासपुर जिले और आस-पास के क्षेत्रों में काम करने वाले भट्ठा मालिकों ने इस बारे में अब तक कोई समर्थन, विरोध या घोषणा नहीं की है।
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यदि पिछले वर्षों की बात करें तो गुरदासपुर जिले में भट्ठे अधिकतम चार महीने ही बंद रहते थे। यहां के भट्ठा मालिकों का कहना है कि मालवा और माझा क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा और अन्य स्थितियों में बड़ा फर्क है, जिसके कारण सात महीने भट्ठे बंद रखने से उन्हें भारी नुकसान होता है।
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गुरदासपुर बेल्ट में काम कर रहे भट्ठा मालिक पहले ही कई तरह की आर्थिक चुनौतियों और संकटों में घिरे होने का दावा कर रहे हैं। उनका कहना है कि ईंट निर्माण की प्रक्रिया में कई बाधाएं हैं। दूसरी ओर, भट्ठों में काम करने वाले मजदूर भी अपनी खराब आर्थिक स्थिति को लेकर कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं। वहीं ईंट खरीदने वाले लोग भी निराश हैं क्योंकि ईंटों के दाम काफी बढ़ गए हैं। समूचे भट्ठा कारोबार की स्थिति देखें तो फिलहाल कोई भी पक्ष संतुष्ट नजर नहीं आ रहा।
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क्या है गुरदासपुर जिले की स्थिति?
गुरदासपुर भट्ठा मालिक संघ के जिला प्रधान राजीव बजाज और वरिष्ठ पदाधिकारी कश्मीर सिंह गुराइया ने बताया कि जिले में लगभग 1663 भट्ठे हैं, जिनमें से 37 पहले ही बंद हो चुके हैं। 126 भट्ठों के मालिक टैक्स जमा करते रहे हैं। पिछले सीजन में विभिन्न मुश्किलों के चलते 33% भट्ठा मालिकों ने अपने भट्ठे नहीं चलाए। उन्होंने कहा कि हालात बेहद खराब होते जा रहे हैं और आशंका है कि आने वाले समय में और भी मालिक इस कारोबार को छोड़ देंगे।
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मालवा और माझा में क्या है फर्क?
राजीव बजाज ने बताया कि मालवा क्षेत्र में कम वर्षा होती है, इसलिए वहां के भट्ठा मालिक साल में केवल एक बार भट्ठा चलाते हैं। वे जनवरी में भट्ठे शुरू करते हैं और जून-जुलाई में काम पूरा कर लेते हैं। वहीं माझा क्षेत्र में अधिक वर्षा के चलते मार्च से जून और फिर अक्टूबर से दिसंबर तक दो बार भट्ठे चलते हैं। यहां भट्ठे केवल चार महीने ही बंद रहते हैं, बावजूद इसके उन्हें बड़ा घाटा उठाना पड़ता है। जबकि मालवा क्षेत्र के भट्ठा मालिक एक बार में ही सारा माल तैयार करके जुलाई के बाद पूरे पंजाब में बेचते हैं।
उन्होंने कहा कि वे यूनियन के सात महीने भट्ठे बंद रखने के निर्णय का विरोध नहीं कर रहे हैं और गुरदासपुर जिले में बैठक कर इस पर फैसला लिया जाएगा।
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क्या हैं बड़ी चुनौतियाँ?
राजीव बजाज ने बताया कि माझा क्षेत्र के भट्ठा मालिक कई बड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं। बारिश की वजह से काफी नुकसान होता है। भट्ठा चलाने के लिए अधिक ईंधन और मजदूरों की जरूरत होती है। एक्सप्रेस हाईवे निर्माण के कारण मिट्टी की मांग बढ़ गई है और इसकी कीमत अब तीन गुना तक बढ़ गई है। पहले एक एकड़ में एक फुट गहरी मिट्टी निकालने का रेट 1 लाख रुपये था, जो अब 3 लाख रुपये तक पहुंच गया है। सरकार की माइनिंग पॉलिसी भी परेशानी का कारण बन रही है।
कोयले के दाम भी पिछले वर्षों की तुलना में काफी बढ़े हैं। भले ही अब इसमें थोड़ी गिरावट आई हो, लेकिन चार साल पहले की तुलना में कीमतें अब भी काफी ज्यादा हैं।
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मजदूरों की कमी बनी बड़ी समस्या
बजाज ने बताया कि माझा बेल्ट के भट्ठा मालिकों के लिए सबसे बड़ी समस्या मजदूरों की कमी है। स्थानीय मजदूर पहले ही खाड़ी देशों और अन्य जगहों पर जा चुके हैं। छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से आने वाले मजदूर अब परेशान कर रहे हैं। एडवांस भुगतान देने के बावजूद मजदूर पंजाब नहीं आ रहे और जो मजदूर आ रहे हैं वे मालवा क्षेत्र को प्राथमिकता दे रहे हैं क्योंकि वहां भट्ठों का काम ज्यादा है। इसके चलते मजदूरों की कमी भट्ठा मालिकों के लिए सिरदर्द बन गई है, जिससे ईंट उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
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ईंटों की कीमत से आम लोग भी नाखुश
एक तरफ भट्ठा मालिक और मजदूर परेशान हैं, तो दूसरी तरफ आम लोग भी नाराज हैं क्योंकि 1000 ईंटों का रेट 6800 से 7000 रुपये तक पहुंच गया है। अब जब पंजाब के भट्ठा मालिकों ने सात महीने भट्ठे बंद रखने का ऐलान कर दिया है, तो इसका असर ईंटों की कीमत पर पड़ेगा। जुलाई की शुरुआत में माझा समेत पंजाब के अन्य क्षेत्रों में भट्ठे बंद हो जाएंगे, जिससे ईंट के रेट में 200 से 500 रुपये तक की बढ़ोतरी हो सकती है।