फरीदकोट के पूर्व महाराजा की ₹40,000 करोड़ की संपत्ति पर 33.33% हिस्सेदारी, राजघराने में कानूनी लड़ाई पर लगा विराम

चंडीगढ़ । राजवीर दीक्षित

(Faridkot royal family ends legal battle over ₹40,000 crore estate, 33.33% stake settled)फरीदकोट के अंतिम शासक महाराजा हरिंदर सिंह बराड़ की लगभग ₹40,000 करोड़ की शाही संपत्ति को लेकर दशकों से चल रही कानूनी लड़ाई में अब बड़ा फैसला सामने आया है। चंडीगढ़ की एक स्थानीय अदालत ने राजघराने के वंशज अमरींदर सिंह को संपत्ति में 33.33% (एक-तिहाई हिस्सा) देने का आदेश सुनाया है।
अमरींदर सिंह, कन्वर मंजीत इंदर सिंह के पोते हैं, जो महाराजा हरिंदर सिंह के भाई थे। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें इस संपत्ति को कानूनी उत्तराधिकारियों में बांटने का फैसला किया गया था।

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🏰 कौन-कौन सी संपत्तियाँ शामिल?
फरीदकोट के महाराजा की शाही संपत्तियाँ बेहद विशाल और बहुमूल्य हैं, जिनमें शामिल हैं –
* राजमहल, फरीदकोट (14 एकड़ में फैला)
* किला मुबारक, फरीदकोट
* फरीदकोट हाउस, नई दिल्ली
* चंडीगढ़ के सेक्टर-17 में कीमती प्लॉट
* मनीमाजरा का किला
इन संपत्तियों की आज की बाजार कीमत करीब ₹40,000 करोड़ आँकी गई है, जो इसे देश के सबसे बड़े राजघरानों के संपत्ति विवादों में से एक बनाती है।

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⚖️ अदालत का आदेश और बंटवारा
अदालत ने आदेश में कहा कि राजकुमारी महीप इंदर कौर (महाराजा की बेटी) के निधन के बाद उनकी हिस्सेदारी पहले उनके पिता महाराजा हरिंदर सिंह के नाम मानी जाएगी और फिर वह उनकी तीनों बेटियों और उत्तराधिकारियों में बराबर-बराबर बांटी जाएगी।
इस तरह –
* राजकुमारी अमृत कौर को 33.33%
* महारानी दीपिंदर कौर को 33.33%
* स्व. महारानी मोहिंदर कौर के कानूनी वारिसों (यानी अमरींदर सिंह की ओर) को 33.33% हिस्सा मिलेगा।

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🕰️ 30 साल पुरानी कानूनी जंग का अंत
इस राजघराने की संपत्ति विवाद की शुरुआत 1982 में हुई थी, जब महाराजा की बेटी अमृत कौर ने पिता की वसीयत की प्रामाणिकता को अदालत में चुनौती दी थी। इसके बाद लगातार तीन दशकों तक यह मामला अदालतों में अटका रहा।
महाराजा हरिंदर सिंह, जो महज 3 साल की उम्र में (1910) फरीदकोट के सिंहासन पर बैठे थे, अपने बेटे की 1961 में हुई मृत्यु के बाद अवसाद में चले गए थे। उसी दौरान उनकी विवादित वसीयत बनाई गई थी।

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🔑 अब क्या होगा?
इस फैसले के बाद अमरींदर सिंह को आधिकारिक रूप से संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा मिलेगा। हालांकि, बाकी दो हिस्से पर दावेदारी करने वाले वारिसों के बीच भी कानूनी पेंच अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं।
30 वर्षों तक चली यह कानूनी जंग भारतीय राजघरानों के सबसे बड़े संपत्ति विवादों में से एक के रूप में इतिहास में दर्ज हो गई है।

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