G7 समिट से पहले वैंकूवर में खालिस्तानी हिंसा: पत्रकार मोचा बेज़िरगन पर हमला, कनाडा में कट्टरपंथ बढ़ने पर उठे सवाल

नई दिल्ली। राजवीर दीक्षित
(Journalist Attacked Ahead of G7 Summit)G7 समिट से ठीक पहले कनाडा में खालिस्तानी उग्रवाद एक बार फिर चर्चा में आ गया है। वैंकूवर में आयोजित एक खालिस्तान समर्थक रैली के दौरान, कनाडाई खोजी पत्रकार मोचा बेज़िरगन पर भीड़ ने हमला कर दिया। उन्हें घेरकर धमकाया गया, उनका फोन छीना गया और रिपोर्टिंग से रोकने की कोशिश की गई। यह पूरी घटना कैमरे में कैद हुई और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।

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बेज़िरगन, जो उत्तर अमेरिका में अलगाववादी गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते हैं, ने इसे “कट्टरपंथ और डराने-धमकाने की खतरनाक प्रवृत्ति” बताया। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी मार्च 2024 में एडमंटन में इसी तरह की घटना घटी थी, जब खालिस्तानी समर्थकों ने भारतीय उच्चायोग के बाहर प्रदर्शन किया था।

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मुख्य संगठन और राजनीतिक संबंध
इस हमले के पीछे “सिख्स फॉर जस्टिस” (SFJ) नामक संगठन को ज़िम्मेदार माना जा रहा है, जो कनाडा, अमेरिका और न्यूज़ीलैंड में खालिस्तानी रैलियों का आयोजन करता रहा है। वहीं, “वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइज़ेशन” (WSO) पर खालिस्तानी आंदोलन को राजनीतिक वैधता देने का आरोप है। बेज़िरगन ने कनाडा के कई मुख्यधारा नेताओं—जैसे कंज़र्वेटिव नेता पीयर पोइलिवर, NDP और लिबरल सांसदों—पर ऐसे तत्वों के साथ मंच साझा करने पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

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हिंसा और शहादत का महिमामंडन
वैंकूवर रैली में खुलेआम पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों की प्रशंसा की गई और मोदी विरोधी बयान दिए गए। आयोजनों में आत्मघाती हमलावरों को श्रद्धांजलि देने जैसी घटनाएं युवाओं में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाली कही जा रही हैं।

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G7 समिट और द्विपक्षीय तनाव
कनाडा में आगामी G7 समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति संभावित है। इस बीच, WSO द्वारा मोदी के निमंत्रण का विरोध करना और भारत की लगातार चेतावनियों के बावजूद खालिस्तानी गतिविधियों पर कार्रवाई की कमी, भारत-कनाडा संबंधों में तनाव का संकेत देती है।

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पत्रकारों पर खतरा, प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल
बेज़िरगन का मामला अकेला नहीं है। कनाडा में कई पत्रकार खालिस्तानी उग्रवाद पर रिपोर्टिंग करते समय हिंसा और धमकियों का सामना कर चुके हैं। इससे प्रेस स्वतंत्रता और जन सुरक्षा को लेकर चिंता गहराती जा रही है।
G7 समिट से पहले यह घटना न केवल कनाडा की अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित कर रही है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती है कि लोकतंत्र, अल्पसंख्यक अधिकार और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे कायम रखा जाए। क्या कनाडा की सरकार इन चरमपंथी गतिविधियों पर निर्णायक कार्रवाई करेगी — यह आने वाले दिनों में तय होगा।