शिमला। राजवीर दीक्षित
(Himachal Ends Liquor Monopoly, Govt Corporations to Run Shops)हिमाचल प्रदेश सरकार ने शराब के ठेकों की व्यवस्था में बड़ा बदलाव करते हुए एक नई पहल की घोषणा की है। अब राज्य में बचे हुए शराब के ठेके निजी ठेकेदारों की बजाय सरकारी एजेंसियां चलाएंगी। सरकार का यह कदम ठेकेदारों की मोनोपॉली को खत्म करने और राजस्व बढ़ाने के प्रयासों का हिस्सा है।
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प्रदेश सरकार ने 2025-26 के लिए शराब की बिक्री से 2850 करोड़ रुपये का राजस्व लक्ष्य रखा है। हालांकि मार्च में हुई नीलामी प्रक्रिया में कुल 2100 में से करीब 250 शराब के ठेके नहीं बिक सके। दो बार की नीलामी के बाद भी जब ठेके नहीं बिके, तो सरकार ने अब इन्हें हिमफैड, एचपीएमसी, वन निगम, सिविल सप्लाई कॉर्पोरेशन और नगर निगम जैसी एजेंसियों के माध्यम से चलाने का फैसला लिया है।
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राजस्व का नया जरिया बन सकते हैं निगम
उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में ठेके बिकने में रुचि न दिखने के चलते यह निर्णय लिया गया है। कुल्लू जिले में 42 और मंडी में 23 ठेके विभिन्न निगमों को सौंपे गए हैं। यदि यह मॉडल सफल होता है, तो भविष्य में शराब बिक्री के लिए सरकार के पास निजी ठेकेदारों के अलावा एक स्थायी और विश्वसनीय विकल्प उपलब्ध रहेगा।
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सत्ता में बदलाव के साथ नीति में बदलाव
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार ने सत्ता में आने के बाद आबकारी नीति में बदलाव करते हुए ठेकों की नीलामी प्रक्रिया को फिर से शुरू किया था। इससे पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में 2600 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। इस बार लक्ष्य और ऊंचा रखा गया है।
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क्या यह मॉडल बनेगा नया रास्ता?
सरकारी एजेंसियों द्वारा शराब के ठेके चलाना एक प्रयोग है, जिसका परिणाम आने वाले महीनों में सामने आएगा। अगर यह सफल रहा, तो प्रदेश में शराब बिक्री के मॉडल में स्थायी परिवर्तन संभव है – जिसमें न केवल सरकार को बेहतर राजस्व मिलेगा, बल्कि निगमों की आर्थिक सेहत भी सुधरेगी।