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नई दिल्ली । राजवीर दीक्षित
वकीलों की सेवाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और अहम फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने अपने आज के आर्डर में साफ किया है कि वकीलों पर उनकी ‘खराब सेवा या पैरवी’ की वजह से कंज्यूमर कोर्ट (उपभोक्ता अदालत) में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
अदालत ने माना कि वकालत का पेशा व्यापार से अलग है और ये कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट 1986 (उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986) के दायरे में नहीं आता।
कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट साल 1986 में आया था और इसमें साल 2019 में संशोधन किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने आज इसी कानून के प्रावधानों की रौशनी में स्पष्ट कर दिया कि सेवाओं की कमी के लिए वकीलों को इस कानून के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
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सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वकील के पेशेवरों के साथ व्यापार करने वाले व्यक्तियों से अलग व्यवहार किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सेवाओं में कमी का आरोप लगाने वाले वकीलों के खिलाफ शिकायत उपभोक्ता फोरम के समक्ष सुनवाई योग्य नहीं है।
इस फैसले को देश भर के वकीलों के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकीलों की सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण कानून के दायरे में नहीं आती।
बार काउंसिल आफ इंडिया, दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और बार ऑफ इंडियन लायर्स जैसी संस्थाओं ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के 2007 के फैसले को चुनौती दी थी।
इस फैसले में कहा गया था कि वकील और उनकी सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के दायरे में आती हैं।
वकीलों से जुड़े संस्थानों में अपनी याचिका में कहा था कि वकील या लीगल प्रैक्टिशनर, डाक्टरों, और अस्पतालों की तरह अपने काम का विज्ञापन नहीं कर सकते।
इसलिए उनकी सेवाओं क उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत नहीं लाया जा सकता।
बता दें कि इस समय बार काउंसिल आफ इंडिया के डेटा के मुताबिक देश में करीब 13 लाख वकील हैं।
वकीलों का कहना है कि उन्हें अपना काम करने के लिए सुरक्षा और स्वतंत्रता की जरुरत है।
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकाड्र्स एसोसिएशन का कहना था कि कानूनी सेवा किसी वकील के नियंत्रण में नहीं होती है।
वकीलों को एक निर्धारित फ्रेमवर्क में काम करना होता है। फैसला भी वकीलों के अधीन नहीं होता है।
ऐसे में किसी केस के रिजल्ट के लिए वकीलों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।